वही दीप (मेरी पहली कविता)
क्या है दीप?पानी से गुंथी मिट्टी
आग में तपाया
धूप में सुखाया
सृजनकर्ता के कलात्तमक हाथों से
सृजन किया गया
एक मिट्टी का घेरा
तेल रूपी सांस
और जलने के लिए
थोङी सी हवा
बस थोङी सी
आंधी या ख़लाअ नहीं
रात भर जिस के घर को रोशन किया
उसी की ठोकर से टुकङे टुकङे हो गया
कूङे की तरह घर से बाहर फेंका गया
जब तक जलता हूं तो
वाह!! वाह!!
नहीं तो तुम्ही बताओ?
तुम्ही बताओ...
क्या वही दीप हूं मैं?
चलो,
फिर क्या हुआ
फिर बनूंगा, जलूंगा
और
बांटूंगा उजाला
आपकी पहली कविता इतनी अच्छी है कि मैंने अभी से अगली का इंतज़ार करना शुरू कर दिया है.
ReplyDeleteकविता अच्छी लगी।
ReplyDeleteacchi kavita hai...likhte rahiye
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