आखिर दिल्ली में लग गया दिल
शायद जब से मैंने जिंदगी में लिखने के रास्ते को अपना मकसद बना लिया तब से इसके सारे मोड़ मेरे दिल्ली की ओर मुड़ते रहे, ख़ाब खुली आखों में तैरता रहा कि दिल वालों की दिल्ली में दिल रम जाए। आज यही ख़ाब हकीकत है।
अभी कुछ ही दिन हुए हैं इस ख़ाब को पूरा हुए, पीछे मुड़कर देखता हूं तो वो सारे मंज़र याद आते हैं, जब मैंने इस खाब की पहली सीढ़ी पर एक एक ईंट रख कर हकीकत की दहलीज तक पहुंचाने वाले कई सारे पाएदान बनाए। खैर गिरते पड़ते चढ़ते चढ़ते मैं चढ़ ही आया हूं, जिस दिन चला था तो धमाकों ने स्वागत किया, जब से यहां हूं तो कभी गोलियों तो कभी धमाकों की गूंज आसपास ही सुनाई देती है। फिर अगर कहूं कि दिल्ली में दिल लग गया है, तो इसमें कोई बेदिली वाली बात नहीं होगी। इसमें उन सब लोगों का हाथ तो है ही जिन्होंने यहां तक पहुंचने के लिए प्रोत्साहित किया, लेकिन उन सब का बड़ा किरदार है जो अहसास कराते रहे कि ये सब ख़ाब की बातें हैं, लेकिन यहां पहुंचते ही जिन्होंने सब से पहले हाथ थामा शैलेस भारतवासी और सजीव सारथी वो इन सबसे अलग ख़ास जगह रखते हैं। बाकी पूरी दिल्ली दिल में सहेज के रखने लायक हो जाउं, कुछ ऐसा करने की सोच रहा हूं।
dil lagaye rakhna aur peeche mudkar mat dekhna. all the best.
ReplyDeleteदिल्ली में दिल लग गया है, तो इसमें कोई बेदिली वाली बात नहीं होगी।
ReplyDeleteसही है!!
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