सफर...

मैं सुलझी हुई
अनसुलझी
पहेली हूं
ना सोना, ना जगना
ना रोना, ना हसना
ना दर्द है, ना ठीक हूं
ना जख़्म है, ना मरहम है
नज़र, ज़ुबान, सुनने की ताकत
जिस्म मे से घटा दी है
मैं उसमें हूं
लेकिन उसका हिस्सा नहीं
मैं बुरा नहीं
पर नापसंद हूं
रुका हूं, पर सफर में हूं
तलाश है
पर खोया कुछ भी नहीं
मंजिल रस्ते में बदल गई
और नदी का पानी कांच
आग ठंडी बर्फ हुई
ठंड में ठिठुरता प्यासा हूं
रुका हूं, पर सफर में हूं
हर्फ हैं,
पर लफ्ज़ और वाक्य ग़ुम हैं
कलम है, स्याही है
कोरे सफे नहीं मिल रहे
लिखूंगा
पेड़ों पर
फूलों पर
पत्तों पर
सूरज पर
चांद पर
धरती पर
अंबर पर
जिस्मों पर
रुहों पर
उस दिन लिखूंगा
जिस दिन ये सब कोरे मिलेंगे
फिलहाल रुका हूं, पर सफर में हूं
bahut acchhey..
ReplyDeleteलिख कर तो रख लो...जब कोरे मिलेंगे कट पेस्ट कर देना।
ReplyDeleteसुंदर कविता है भई।
उस दिन लिखूंगा
ReplyDeleteजिस दिन ये सब कोरे मिलेंगे
फिलहाल रुका हूं, पर सफर में हूं
अच्छा है भाई.
बहुत उम्दा!!
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
समीर लाल
ek suljhi hui prastuti,ulhjan bhare jeevan ki,
ReplyDeletelaajawaab kavita ke liye badhai...
saadar
hem jyotsana
नशेमन पर नशेमन इस कदर तामीर करता जा।
ReplyDeleteकि बीजली गिरते गिरते आप ही बर्बाद हो जाए।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
कहां लिखूं, ये सवाल है?
ReplyDeleteउससे कहो, वह आंखें बंद करेगी, बरौनियों और भवों के बीच, आंख के आवरण पर लिखना...
अब यह मत पूछना कि 'उसे' कहां से लाऊं?
दीप जी
ReplyDelete......... उस दिन लिखूंगा
जिस दिन ये सब कोरे मिलेंगे
फिलहाल रुका हूं, पर सफर में हूं .
एक लंबे समय से खामोश हैं आप कुछ नया भी पोस्ट कर दीजिये.
to huzoor aap haiN yahaaN..!
ReplyDeletemusalsal safar meiN hona hi zindgi
ki pukht`gi ki pehchaan hai, tasdeeq hai iss baat ki k aashaaeiN, sambhaanvaaeiN, aur andar kaheeN samvednaaeiN zinda haiN...
rvaani hi zindgaani hai mere dost.
Ek achhi nazm pr mubaarakbaad .
---MUFLIS---
one day u'll surely get ur destination....its really a nice poem.
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